Project Description
1991 से लेकर 2010 के बीस साल के सपफर में मीडिया के चरित्र में आए बदलाव और इसकी वजह से भारतीय मीडिया में उपजी प्रवृत्तियों पर इस पुस्तक में चर्चा की गई है। भारतीय मीडिया का विस्तार इस दौर में जिस तेजी से हुआ उस तेजी से दूसरे किसी दो दशक में नहीं हुआ। अखबारों और पत्रिकाओं की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी देखी गई।
21 वीं सदी की शुरुआत के दस सालों में टेलीविजन मीडिया का कापफी तेजी से विस्तार हुआ। देखते-देखते भारत में कई खबरिया चैनल शुरू हो गए। इस विस्तार और मीडिया में लगने वाली पूंजी के चरित्र में हुए बदलाव ने कई नई प्रवृत्तियों को जन्म दिया।
मीडिया के क्षेत्र में सबसे बड़ा बदलाव तो यह हुआ कि देखते-देखते मीडिया से जन सरोकार गायब हो गया और खबर भी एक उत्पाद बन गया। जाहिर है कि जब खबर एक उत्पाद बन जाए और पाठक या दर्शक एक उपभोक्ता तो ऐसी हालत में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना ही मकसद बन जाता है। मीडिया के साथ भी ऐसा ही हुआ। ऐसा होने से मीडिया के चरित्र में किस तरह का बदलाव आया, इस पर विस्तार से चर्चा इस किताब में की गई है।
Book Description:
Publisher: Diamond Pocket Books Pvt Ltd
ISBN-13 : 978-8128830556